यहां नहीं जलाते रावण, जाने आखिर ऐसा क्या हुआ?
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पूरे देश में दशहरा के दिन रावण दह बुधवार को हो चुका है लेकिन इटावा के जसवंतनगर में गुरुवार की शाम को भगवान राम के हाथों रावण का वध होगा। यहां पर रावण का पुतला जलाया नहीं जाता बल्कि रावण के मूर्छित होने के बाद उसके पुतले के अवशेष लोग बीन कर ले जाते हैं।
रामलीला समिति के प्रबंधक राजीव गुप्ता बबलू व संयोजक ठा. अजेंद्र सिंह गौर बताते हैं कि सदियों से दूसरे दिन रावण वध की परंपरा चली आ रही है। रामलीला में रावण को जलाया नहीं जाता है बल्कि उसका वध किया जाता है। इसके लिए गुरुवार की सभी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं।
पूरे देश में दशहरा पर रावण का दहन किया जाता है, वहीं कानपुर देहात के डेरापुर में दूसरे दिन एकादशी पर रावण का पुतला दहन करने की परंपरा वर्षों से चली आ रही है। डेरापुर की रामलीला करीब 50 वर्ष से अधिक समय की हो गई है।
यहां पर दशहरा पर रावण दहन नहीं किया जाता है बल्कि दूसरे दिन उसका पुतले घसीट कर लंकापुरी टीले के पास ले जाया जाता था और तालाब में विसर्जन किया जाता था। करीब 10 वर्ष पूर्व समिति के लोगों ने दूसरे दिन पुतला दहन का फैसला लिया। कमेटी के अध्यक्ष राजेश मिश्रा व प्रबंधक सोमिल तिवारी, राम किशोर पांडेय ने बताया कि एकादशी के दिन रावण जलाने की परंपरा है।
दूसरे दिन ही क्यों रावण दहन
कुछ जगह पर विजयादशमी के दूसरे दिन एकादशी पर रावण दहन की परंपरा है। इसके पीछे एक मत यह है कि रावण प्रकांड पंडित और बलशाली था। उसे शिवजी से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था, प्रभु श्रीराम ने बुराई के प्रतीक रावण का विजयादशमी पर वध कर दिया था लेकिन उसके प्राण नहीं हरे गए थे। प्रभु श्रीराम ने उसकी बुराइयों का अंत विजयादशमी पर कर दिया था।इसके बाद उन्होंने लक्ष्मण को ज्ञान प्राप्त करने के लिए मृत्यु शैया पर लेटे रावण के पास भेजा था। रावण को पता था कि किस समय प्राण त्यागने से उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। इसलिए उसने विजयादशमी के दूसरे दिन एकादशी की तिथि पर चंद्र और सूर्य की नक्षत्रीय दिशाएं पंचक में आने पर प्राण त्यागे थे।

Awantika Awasthi
यूपी पत्रिका डेस्क
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